श्रेयांश सिंह:खैरागढ़
खैरागढ़ शहर में इन दिनों राजनीति का मेला लगा हुआ है। मंच पर बयानबाजी का शोर है, पंडालों में गुटबाजी का खेल है, और दर्शक बनी जनता तमाशा देख रही है। हर कोई सोच रहा है—“ये राजनीति है या धारावाहिक का नया सीजन?
बयानबाजी का महाकुंभ
पार्टी के नेता आपस में ऐसे भिड़े हैं जैसे अखाड़े में पहलवान।
एक गुट का नारा—
ये लोग रिश्वतखोर हैं, 8-10 लाख की गवन कर बैठे हैं!
दूसरा गुट जोर लगाकर चिल्ला रहा है—
नहीं भाई, ये टीम तो कमीशनखोर है, पार्टी और जनता से कोई मतलब ही नहीं!
जनता हक्की-बक्की होकर सोच रही है—
ये शहर चला रहे हैं या मुहल्ले का चौपाल विवाद निपटा रहे हैं?
बाहरी नेताओं का जादू
कुछ का आरोप है कि यह गुट “बाहरी कथित नेता” के जादू में फंस गया है।
लोग कानाफूसी कर रहे हैं—
“अरे, इन्हें तो बरगला दिया गया है, अब ये अपने शहर के बजाय बाहरियों के इशारों पर नाच रहे हैं।”
वहीं कुछ संगठन के लोग पूरे आत्मविश्वास से कह रहे हैं—
“भाई, राजनीति का असली स्वाद तो दारू-मुर्गा वाली बैठकों में ही है। जनता-वंटा तो बस पोस्टर में ठीक है।”
जनता का फैसला
जनता अब दर्शक दीर्घा में बैठी है, छतों पर चढ़कर तमाशा देख रही है।
दो-तीन दिन तक हर गली-मोहल्ले में चर्चा के बाद एक ही बात कही जा रही है—
चलो, ये टीम भले झगड़ालू हो, लेकिन शहर में काम तो कर रही है। कुछ तो बदल रहा है।
वहीं बाकी गुट के बारे में लोगों का मत है—
“बस बातें ही बातें… और वो भी प्रदेश स्तर की। शहर की समस्याओं पर कोई ध्यान ही नहीं।”
कामचोर धड़ा
जनता ने एक गुट को नया नाम दे दिया है—’कामचोर धड़ा’।
इनका एजेंडा बस इतना है:
मुद्दे उठाना नहीं, काम करना नहीं… बस विरोध करना और बड़े नेताओं के नाम पर राजनीति खेलना।
और नाटक जारी…
इस पूरे राजनीतिक मेले में अब सोशल मीडिया का तड़का भी लग गया है।
व्हाट्सएप और फेसबुक पर लोग लाइक करने से भी डर रहे हैं।
ना जाने कौन कब नाराज़ हो जाए, और फिर ‘स्क्रीनशॉट’ का हथियार चले।
अब दोनों गुटों ने कसम खा रखी है—
मैं उसकी पोल खोलूंगा!”
नहीं, पहले मैं उसकी पोल खोलूंगा!
नतीजा यह है कि जनता सोच रही है—
हमारे लिए काम कौन करेगा? या फिर ये नाटक बस ऐसे ही चलता रहेगा?
अंतिम सवाल: चोर कौन है?
अब जनता के मन में बड़ा सवाल है—
ये दोनों गुट में रिश्वतखोर आखिर कौन है?
और ये लोग अब एक-दूसरे पर आरोप क्यों लगा रहे हैं?
लोग आपस में कानाफूसी कर रहे हैं—
जब ये दोनों एक ही सांप के पेट में थे, तब क्यों नहीं बोले?
क्या दोनों गुट ही चोर हैं और अब चोरी का माल बांटने में फूट पड़ गई है?
जनता की जिज्ञासा बढ़ रही है:
कितनी चोरी का राज खुलने वाला है? कौन सा गुप्त खजाना सामने आने वाला है?
आगे देखते हैं… यह राजनीतिक सीरियल का अगला एपिसोड क्या नया ड्रामा लेकर आहैता है!”
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