श्रेयांश सिंह/खैरागढ़ –
छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ में स्थित मनोहर गौशाला आज सिर्फ एक गौशाला नहीं रही, बल्कि यह एक आदर्श और आत्मनिर्भर ग्रामीण विकास केंद्र बनती जा रही है। यहां गौवंशों को आधुनिकता और परंपरा के संगम से एक ऐसा प्राकृतिक वातावरण मिल रहा है, जिसकी कल्पना द्वापर युग की गौशालाओं में की जाती थी। पेड़ों की घनी छांव, शांत वातावरण और जैविक खेती की दिशा में उठाए गए कदमों के साथ यह गौशाला देशभर में एक प्रेरणास्रोत बन रही है।
🌳 4,000 से अधिक पेड़ों का हराभरा जंगल
गौशाला परिसर में 4,500 से अधिक पौधों का एक घना जंगल तैयार किया जा रहा है, जिसमें इस वर्ष मानसून के दौरान विशेष रूप से 700 अशोक के पौधे लगाए जाएंगे। यह पूरा क्षेत्र गौवंशों के स्वच्छंद विचरण के लिए खोला जाएगा, जहां वे प्राकृतिक छांव और ताजगी भरे वातावरण में रह सकेंगे। यह न केवल पर्यावरणीय संतुलन को सहेजेगा, बल्कि पशुओं के लिए शांति, सुरक्षा और स्वास्थ्यवर्धक माहौल भी सुनिश्चित करेगा।
गौशाला के ट्रस्टी डॉ. अखिल जैन (पदम डाकलिया) बताते हैं कि “हमारी सोच केवल संरक्षण की नहीं, बल्कि संवर्धन की भी है। हम चाहते हैं कि यहां रहने वाले गौवंश एक प्राकृतिक और दिव्य वातावरण में जीवन यापन करें।”
🏥 चंद्रमणी गौ चिकित्सालय और रिसर्च सेंटर का निर्माण
गौशाला परिसर में एक आधुनिक गौ चिकित्सालय एवं रिसर्च सेंटर का निर्माण भी तेजी से चल रहा है, जिसका नाम चंद्रमणी गौ चिकित्सालय रखा गया है। आगामी दो वर्षों में यह चिकित्सालय पूरी तरह से तैयार हो जाएगा। इसका उद्देश्य गौवंशों के उपचार, देखभाल और अनुसंधान को वैज्ञानिक आधार देना है।
इसके साथ ही परिसर में एक विशाल तालाब का निर्माण पूर्ण हो चुका है, जिससे जल की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। गर्मी के मौसम में भी गौवंशों को जल संकट से जूझना न पड़े — इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है।
🌾 आत्मनिर्भर कृषि की दिशा में अभिनव प्रयोग
मनोहर गौशाला में केवल गौसेवा तक सीमित न रहते हुए, गौमूत्र और गोबर से जैविक खाद और प्राकृतिक कीटनाशकों का निर्माण भी किया जा रहा है। यह जैविक उत्पाद रासायनिक उर्वरकों का एक स्वस्थ विकल्प बनकर सामने आ रहे हैं।
इस नवाचार पर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर की वैज्ञानिक टीम फील्ड ट्रायल और अनुसंधान कर रही है। उल्लेखनीय है कि इस प्रयोग का पेटेंट भी प्राप्त हो चुका है, जो इस प्रयास की वैज्ञानिक मान्यता और राष्ट्रीय स्तर पर इसकी स्वीकार्यता को दर्शाता है।
🌱 गांव की आत्मनिर्भरता की ओर कदम
गौशाला की यह पूरी परियोजना एक बड़े दृष्टिकोण का हिस्सा है — गौशाला के माध्यम से आत्मनिर्भर गांव की संकल्पना। आज मनोहर गौशाला न केवल गायों के लिए एक सुरक्षित निवास है, बल्कि यह ग्रामीण विकास, रोजगार, जैविक कृषि और पर्यावरण संरक्षण का भी एक शक्तिशाली केंद्र बन गया है।
डॉ. अखिल जैन का कहना है, “हम चाहते हैं कि देशभर की गौशालाएं सिर्फ पशु आश्रय न रहें, बल्कि आत्मनिर्भरता और नवाचार के केंद्र बनें। मनोहर गौशाला इसी दिशा में एक सशक्त उदाहरण बन रही है।”
🔚 निष्कर्ष
मनोहर गौशाला की यह पहल न केवल गायों की सेवा का उदाहरण है, बल्कि यह आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की नींव भी रख रही है। प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गौवंश संवर्धन और जैविक कृषि को बढ़ावा देने वाले इस मॉडल को यदि देशभर में अपनाया जाए, तो यह हर गांव को समृद्ध और सतत बना सकता है।
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