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छत्तीसगढ़ की पंचायतों की आर्थिक स्थिति चिंताजनक: आत्मनिर्भर ग्राम शासन के लिए तत्काल सुधार आवश्यक

संपादक – वाई. के.साहू 7746873622

रायपुर – छत्तीसगढ़ की ग्राम पंचायतें, जो ग्रामीण विकास की रीढ़ मानी जाती हैं, आज आर्थिक संसाधनों की भारी कमी से जूझ रही हैं। पंचायती राज प्रणाली की नींव जिस ‘ग्राम स्वराज’ पर रखी गई थी, वह अब आर्थिक असंतुलन के कारण डगमगाने लगी है। प्रदेश की हजारों पंचायतें विकास कार्यों के लिए राज्य और केंद्र सरकार की अनुदान राशि पर पूर्णतः निर्भर हो गई हैं, जिससे न तो स्वतंत्र योजना बना पा रही हैं और न ही समय पर परियोजनाओं को पूरा कर पा रही हैं।

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आर्थिक आत्मनिर्भरता: पंचायतों की प्राथमिक जरूरत

वर्तमान में पंचायतों को स्ववित्तीय स्रोत जैसे – जल कर, हाट बाजार शुल्क, भवन कर आदि से बहुत ही सीमित आय होती है। सरकारी अनुदानों के देर से मिलने या लक्ष्य से कम मिलने के कारण कई विकास कार्य अधर में लटक जाते हैं। ग्रामीण रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता जैसी बुनियादी सेवाएं भी प्रभावित हो रही हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि पंचायतों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए नीतिगत बदलाव, तकनीकी प्रशिक्षण, और स्थानीय संसाधनों के बेहतर उपयोग की आवश्यकता है।

जमीनी हकीकत: पंचायत सचिवों और सरपंचों की जुबानी

इस मामले पर हमने कई सरपंचो से उनका राय लेने की कोशिश की जिसमे उनका कहना था कि ग्राम पंचायतों के विकास के लिए जिस उद्देश्य के साथ जनप्रतिनिधि चुने जाते है उसमें आर्थिक सहायता की बहुत जरूरत पड़ती है लेकिन ग्राम पंचायतों को मांग व जरूरत के अनुसार राशि नही मिलने के कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था पिछड़ता जा रहा है शासन द्वारा नरेगा योजना में सिर्फ मजदूरी मुलक कार्यो की स्वीकृति दी जाती है वही डब्ल्यूबीएम सड़क हो या सीसी रोड सहित नरेगा योजना में अनेक कार्य मटेरियल द्वारा कराए जाना चाहिए लेकिन स्वीकृति नहीं मिलने के कारण विकास कार्य नही हो पाता यहां तक कि ग्राम पंचायतों के माध्यम से 15वे वित्त आयोग से मिलने वाली राशि से कई जरूरत के कार्य कराया जाता है जिसमे आडिट के समय आपत्ति दर्ज कर दिया जाता है सरपंचो ने आगे कहा कि ग्राम पंचायतों को सालाना 20 लाख रुपये मूलभूत आवश्यकताओं के पूर्ति के लिए शासन द्वारा दिया जाना चाहिए जिससे ग्राम पंचायतों का विकास हो सके।

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एक पंचायत सचिव नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि अधिकांश समय कागजों पर खर्च होता है, और विकास कार्य प्रतीक्षा में रह जाते हैं। “अगर पंचायतों को खुद के संसाधन विकसित करने का अधिकार और मार्गदर्शन मिले, तो गांव आत्मनिर्भर बन सकते हैं।”

सरकार की योजनाएं: धरातल पर प्रभाव सीमित

हालांकि राज्य सरकार द्वारा पंचायतों को सशक्त बनाने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं लेकिन इनके प्रभाव सीमित रहे हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि जब तक पंचायतों को आय के स्थायी स्रोत नहीं दिए जाते, तब तक यह प्रयास अधूरे रहेंगे।

क्या हो सकते हैं समाधान?

  1.  स्थानीय कर संग्रहण को प्रोत्साहन: पंचायतों को भवन कर, व्यापार कर आदि से आय प्राप्त करने की स्वायत्तता दी जाए।
  2.  सामुदायिक संसाधनों का व्यवसायीकरण: तालाब, वन उत्पाद, स्थानीय उद्योगों से पंचायतों को आय हो।
  3.  तकनीकी प्रशिक्षण: पंचायत कर्मियों को ई-गवर्नेंस, बजट प्रबंधन और आय सृजन की ट्रेनिंग दी जाए।
  4.  जन सहभागिता: ग्रामीण जनता को पंचायत के बजट और योजनाओं में सहभागी बनाया जाए
  5.  नरेगा के माध्यम से निर्माण कार्यो की स्वीकृति तत्काल मिलनी चाहिए साथ ही भुगतान समय पर किया जाना चाहिए

 विकास के द्वार खोलने की कुंजी है आत्मनिर्भर पंचायत

छत्तीसगढ़ की 11,000 से अधिक पंचायतें यदि आर्थिक रूप से सक्षम बनेंगी, तो न सिर्फ गांवों का समग्र विकास संभव होगा, बल्कि रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम उठाया जा सकेगा। शासन को चाहिए कि वह इस मुद्दे को प्राथमिकता दे और पंचायती राज व्यवस्था को सशक्त करने के लिए ठोस एवं स्थायी उपाय करे।

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